हाय....! ये अंदाज तेरा....
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
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हाय....! ये अंदाज तेरा.... |
हाय....! ये अंदाज तेरा....
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
कुछ - कुछ तुम्हारे एहसास सा है।
हल्का सा झोंका सर्द हवा का....
मरहम गुनगुणी धूप,
तुम्हारे नर्म ख़याल सा है।
बस दिल को छू यूँ गुजर जाता है...
अंदाज़ उसका रेशमी ख़्वाब सा है।
पीछे मुड़, यूँ ही कई बार देखा है...
यहीं कहीं से गुजरे हो तुम,
न जाने क्यूँ यूँ एहसास हुआ है।
अंदाज़ उसका रेशमी ख़्वाब सा है।
पीछे मुड़, यूँ ही कई बार देखा है...
यहीं कहीं से गुजरे हो तुम,
न जाने क्यूँ यूँ एहसास हुआ है।
हाय....! ये अंदाज तेरा....
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
हवाओ पे जो तुने अपना नाम लिखा है।
कानो से होकर गुजरी है अभी...
कहकर गई है
झुमके को भी छेड़ गई है।
पर देखो!
लटों में आकर आख़िर उलझ गई हैं।
कानो से होकर गुजरी है अभी...
कहकर गई है
झुमके को भी छेड़ गई है।
पर देखो!
लटों में आकर आख़िर उलझ गई हैं।
हाय....! ये अंदाज तेरा....
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
बहुत मसक्कत से लिखा हैं...
हवाओं पर प्रेम पत्र ये.…
देखो ख्याल रखना...
कि तेरी ही गली को चला है..
थोड़ा इन्तज़ार कर पढ़ लेना।
कभी जो कह सकी न मैं...
उस हाल को समझ लेना।
हाय....! ये अंदाज तेरा....
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
हाय....! ये अंदाज तेरा....
नवम्बर के गुनगुणी धूप सा है।
Aparichita_अपरिचिता✍️
क्या बात है 👌👌
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